देशद्रोह, यानी के वो काम जो देश के खिलाफ हो, देश के कानून और सविंधान के खिलाफ हो, देश और देश की जनता के हितों के खिलाफ हो, देशद्रोह कहलाता है और उसे करने वाला देशद्रोही । किन्तु पिछले कुछ 4-5 सालों से देश में एक नयी राष्ट्रवादियों की फसल तैयार हुई है जो हर किसी को देशभक्त और देशद्रोही के प्रमाणपत्र बांटने का काम कर रही है ।
वो तथाकथित राष्ट्रवादी अपनी अपनी स्वामिभक्ति में इतने चूर है कि उनको उनके स्वामी की "सामान्य आलोचना" भी उन्हें देशद्रोह लगती है, और आलोचना करने वाला इंसान ग़द्दार या पाकिस्तानी ! 2014 के पहले का भारत जिसमे पैदा होने वाला हर एक भारतीय अपनी पैदाईश पे "शर्मिंदा" था, उस भारत में आलोचना करने वालो को "विरोधी पक्ष" कहा जाता था, और उस आलोचक/निंदक को हिक़ारत भरी नज़रो से नहीं देखा जाता था, किन्तु वक़्त के साथ भारत का "नसीब" बदल गया, जबसे "विकास के पापा" ने भारत की बागडोर संभाली है ,हर आलोचक/निंदक अब ग़द्दार या पाकिस्तानी घोषित हो गया है ! 2014 के पहले के पाषाण युग में एक पत्रकार जनप्रतिनिधियों से तीखे सवाल कर सकता था, किन्तु अब उसको "बागों में बहार" जैसे सवाल पूछने पर मजबूर किया जा रहा है, लाइव रिपोर्टिंग के दौरान "देश भक्त" भेजकर उसे धमकियां दी जाती है और पूरी कोशिश की जाती है उसकी आवाज़ को दबा दी जाए ताकि वो ऐसा "देशद्रोह" करने की जुर्रत न करे ! पाषाण युग के भारत में कोई भी शिक्षा संस्थान गर्व करती थी कि उसका alumnus
या भूतपूर्व छात्र आज देश के किसी उच्च पद पर आसीन है, किन्तु इस स्वर्णिम दौर के भारत में कोई भी शिक्षा संस्थान देश के प्रधानमंत्री को अपना छात्र मानने को तैयार नही है , और जो कोई भी हिम्मत करता है देश के प्रधानमंत्री की शिक्षा के बारे में पूछने की उसे तुरंत देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है । आखिर क्या वजह है कि देश के इस स्वर्णिम काल में देशद्रोह बढ़ता ही जा रहा है और देशद्रोही की संख्या लगभग 70% तक जा पहुंची है ? क्यों देश की जनता बग़ावत पे उतर आई है और क्यों वो लोग देशद्रोह किये जा रहे है ? ये एक गंभीर प्रश्न है क्योंकि अगर किसी देश के 70% नागरिक देशद्रोही है तो वो देश उन्नति नहीं कर सकता क्योंकि सारे देशद्रोही सड़कों पर आ जायेंगे और देश गृहयुद्ध की तरफ चला जायेगा ! किन्तु हमारे देश में स्तिथि इसके उलट है, जनता रास्ते पर तो है कागर बग़ावत करने के लिए नही बल्कि ATM के बाहर , कोर्ट कचहरी के बाहर, अस्पतालों के बाहर, बैंकों के बाहर, और ये सब देशद्रोही इतने मजबूर और लाचार है कि चुपचाप खड़े है, न कोई बगावत की, न धरना प्रदर्शन, और न ही कोई आगज़नी ? हाँ कुछ तथाकथित "देश भक्त" जरूर मारने पीटने पे उतारू हो जाते है अगर देश की जनता अपनी समस्याएं बताने लगे तो , आजकल के नए ट्रेंड के मुताबिक़ अगर देश की आर्मी तकलीफ झेल सकती है तो जनता क्यों नही ? ठीक है अगर इस तर्क को मान भी लिया जाए तो फिर सिर्फ देश की जनता ही क्यों ये तकलीफ बर्दाश्त करे? देश के नेता, एक्टर, बड़े पूंजीपति ये लोग क्यों लाइन में नही लगे है, क्या ये देशभक्त है और सिर्फ आम जनता ही देशद्रोही है? और जो लोग इस समस्या को जनता के सामने लाना चाहते है वो भी देशद्रोहो हो गए, सोशल मीडिया पे कुछ भाड़े के "देश भक्त" ये बताने में दिन रात लगे हुए है कि जनता भी देहद्रोही है और इस समस्या के खिलाफ आवाज़ उठाने देशद्रोह है ! हो सकता है कि ये लेख लिखने के लिए मैं भी देशद्रोही घोषित हो जाऊं, किन्तु उन देश भक्तो से मेरा सिर्फ एक सवाल है कि "क्या देश की समस्या को उजागर करना, उस जनता के लिए आवाज़ उठाना वाक़ई देशद्रोह है??? "
वो तथाकथित राष्ट्रवादी अपनी अपनी स्वामिभक्ति में इतने चूर है कि उनको उनके स्वामी की "सामान्य आलोचना" भी उन्हें देशद्रोह लगती है, और आलोचना करने वाला इंसान ग़द्दार या पाकिस्तानी ! 2014 के पहले का भारत जिसमे पैदा होने वाला हर एक भारतीय अपनी पैदाईश पे "शर्मिंदा" था, उस भारत में आलोचना करने वालो को "विरोधी पक्ष" कहा जाता था, और उस आलोचक/निंदक को हिक़ारत भरी नज़रो से नहीं देखा जाता था, किन्तु वक़्त के साथ भारत का "नसीब" बदल गया, जबसे "विकास के पापा" ने भारत की बागडोर संभाली है ,हर आलोचक/निंदक अब ग़द्दार या पाकिस्तानी घोषित हो गया है ! 2014 के पहले के पाषाण युग में एक पत्रकार जनप्रतिनिधियों से तीखे सवाल कर सकता था, किन्तु अब उसको "बागों में बहार" जैसे सवाल पूछने पर मजबूर किया जा रहा है, लाइव रिपोर्टिंग के दौरान "देश भक्त" भेजकर उसे धमकियां दी जाती है और पूरी कोशिश की जाती है उसकी आवाज़ को दबा दी जाए ताकि वो ऐसा "देशद्रोह" करने की जुर्रत न करे ! पाषाण युग के भारत में कोई भी शिक्षा संस्थान गर्व करती थी कि उसका alumnus
या भूतपूर्व छात्र आज देश के किसी उच्च पद पर आसीन है, किन्तु इस स्वर्णिम दौर के भारत में कोई भी शिक्षा संस्थान देश के प्रधानमंत्री को अपना छात्र मानने को तैयार नही है , और जो कोई भी हिम्मत करता है देश के प्रधानमंत्री की शिक्षा के बारे में पूछने की उसे तुरंत देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है । आखिर क्या वजह है कि देश के इस स्वर्णिम काल में देशद्रोह बढ़ता ही जा रहा है और देशद्रोही की संख्या लगभग 70% तक जा पहुंची है ? क्यों देश की जनता बग़ावत पे उतर आई है और क्यों वो लोग देशद्रोह किये जा रहे है ? ये एक गंभीर प्रश्न है क्योंकि अगर किसी देश के 70% नागरिक देशद्रोही है तो वो देश उन्नति नहीं कर सकता क्योंकि सारे देशद्रोही सड़कों पर आ जायेंगे और देश गृहयुद्ध की तरफ चला जायेगा ! किन्तु हमारे देश में स्तिथि इसके उलट है, जनता रास्ते पर तो है कागर बग़ावत करने के लिए नही बल्कि ATM के बाहर , कोर्ट कचहरी के बाहर, अस्पतालों के बाहर, बैंकों के बाहर, और ये सब देशद्रोही इतने मजबूर और लाचार है कि चुपचाप खड़े है, न कोई बगावत की, न धरना प्रदर्शन, और न ही कोई आगज़नी ? हाँ कुछ तथाकथित "देश भक्त" जरूर मारने पीटने पे उतारू हो जाते है अगर देश की जनता अपनी समस्याएं बताने लगे तो , आजकल के नए ट्रेंड के मुताबिक़ अगर देश की आर्मी तकलीफ झेल सकती है तो जनता क्यों नही ? ठीक है अगर इस तर्क को मान भी लिया जाए तो फिर सिर्फ देश की जनता ही क्यों ये तकलीफ बर्दाश्त करे? देश के नेता, एक्टर, बड़े पूंजीपति ये लोग क्यों लाइन में नही लगे है, क्या ये देशभक्त है और सिर्फ आम जनता ही देशद्रोही है? और जो लोग इस समस्या को जनता के सामने लाना चाहते है वो भी देशद्रोहो हो गए, सोशल मीडिया पे कुछ भाड़े के "देश भक्त" ये बताने में दिन रात लगे हुए है कि जनता भी देहद्रोही है और इस समस्या के खिलाफ आवाज़ उठाने देशद्रोह है ! हो सकता है कि ये लेख लिखने के लिए मैं भी देशद्रोही घोषित हो जाऊं, किन्तु उन देश भक्तो से मेरा सिर्फ एक सवाल है कि "क्या देश की समस्या को उजागर करना, उस जनता के लिए आवाज़ उठाना वाक़ई देशद्रोह है??? "
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