Saturday 24 December 2016

राष्ट्रविरोधी दंगल

दंगल, अभी हाल ही में रिलीज़ हुई, इस फिल्म में मुख्य किरदार ग़द्दार आमिर खान ने निभाया है, सोशल मीडिया पे कुछ राष्ट्रभक्तों द्वारा इस फिल्म के खिलाफ फतवा जारी किया गया और इसको राष्ट्रविरोधी दंगल घोषित कर दिया गया! वैसे इस देश में दंगल कोई नई बात नहीं हैं, पहलवानी करना, अखाडे में दंगल करना हमारे देश की पुरानी परंपरा है, इसी दंगल ने हमें गामा पहलवान और दारा सिंह जैसे शूरवीर दिए है! किन्तु यहाँ दंगल की नहीं बल्कि "राष्ट्रविरोधी" दंगल की बात हो रही है, एक बहुत बड़ा 'राष्ट्रविरोधी' दंगल 8 नवम्बर 2016 को आज़ाद भारत के पहले 'बेशर्म' प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ( 2014 से पहले वाले PM शर्मिंदा थे) ने 'लांच' किया था !  8 नवम्बर से शुरू हुआ यह दंगल अभी तक 150 ज़िन्दगी की बलि ले चुका है, सैंकड़ो धंधे तबाह कर चुका है, कई लोगों की नौकरियां छीन चूका है ! इस राष्ट्रविरोधी दंगल की घोषणा करते वक़्त " दंगा विशेषज्ञ" श्री श्री 2002 मोदी जी ने कहा था कि हम काला धन मिटने के लिए दंगल कर रहे है, फिर गिरगिट के रंग की तरह मुद्दा काले धन से बदलकर कैशलेस अर्थव्यवस्था पे आ गया! राष्ट्रविरोधी दंगल अब तो पाकिस्तान तक पहुंच चुका है, जो भी सवाल करेगा उसे तुरंत पाकिस्तानी और राष्ट्रविरोधी घोषित कर दिया जाएगा! देश को आज़ाद हुए लगभग 70 वर्ष हो गए मगर देश ने कभी ऐसा "राष्ट्रविरोधी दंगल" नहीं देखा जितना की 2014 के बाद से देखा है, ऐसे मैं अपनी मर्ज़ी से कह रहा हूँ बल्कि आंकड़े चीख चीख कर कह रहा है कि देश में 2014 से राष्ट्रविरोधी दंगल चल रहा है , अब तक देश की सीमा पर 150 जवान इस दंगल की भेंट चढ़ चुके है,अकेले 2016 में 64 सैनिक शहीद हुए जो पिछले 6 साल में सबसे ज्यादा है(और इनमें उन सैनिकों को नहीं गिना जो ATM के बाहर शहीद हुए)   देश में 70,000 किसान इस दंगल में अपने प्राणों की आहुति दे चुके है, अकेले भाजपा शासित महाराष्ट्र में 5000 किसान "small inconvenience" के लिए शहीद हो चुके है !
इस राष्ट्रविरोधी दंगल ने भारत की अर्थव्यवस्था को भी ठिकाने लगा दिया है, भारत की साख़ विश्व स्तर पे इतनी गिर गयी है कि मूडीज ने भारत की रेटिंग बढ़ाने से इंकार कर दिया, इतना ही नहीं बल्कि इब्न बतूता बनकर दुनिया भर की सैर करने वाले तुग़लक़ ने जब विमुद्रीकरण किया तो दुनिया भर की अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं ने इसकी भरपूर आलोचना की!   



 मज़े की बात तो ये है कि इस राष्ट्रविरोधी दंगल में सबसे ज्यादा मैच तथाकथित राष्ट्रवादियों ने ही जीते है क्योंकि इनके सारे मैच फिक्स थे, जबसे दंगल शुरु हुआ है तब से अब तक एक राष्ट्रवादी अखाड़े के 30 पहलवान नए नोटों की डोपिंग करते हुए पकडे गये ! इस अखाड़े के सर्वेसर्वा जो कहते थे कि दंगल का मक़सद सिर्फ और सिर्फ भ्रष्ट लोगो को रुलाना है आज वो खुद देश विदेश में रोने की नौटंकी कर रहे है, अफ़सोस की बात ये है कि मीडिया भी इस नौटंकी में बराबर शामिल है, मीडिया को एक एक मैच की खबर है, मीडिया की पता है कि कौन सा पहलवान नए नोटों का डोप सेवन कर रहा है और कौन नहीं, सारा का सारा दंगल IPL के मैच की तरह फिक्स किन्तु मीडिया अभी भी खामोश है क्योंकि इन्ही फिक्स्ड मैचों का लाइव टेलीकास्ट दिखा कर उनकी TRP बढ़ेगी, कुछ विपक्ष अखाड़े के पहलवानों ने इस दंगल में हो रहे गड़बड़झाले के खिलाफ आवाज़ उठाने की कोशिश की तो अखाडा प्रमुख ने उन्हें पाकिस्तानी घोषित कर दिया , ये वही अखाडा प्रमुख है जो बिन बुलाए पाकिस्तान जाते है वहाँ केक चाटकर आते है, इसी पाकिस्तान की ISI को पठानकोठ हमले की जांच करवाने के लिए भारत आमंत्रित करते है, इनकी ही की नाक के नीचे अब तक सबसे ज्यादा सैनिक शहीद हुए है , सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की, सबसे ज्यादा उद्योग धंधे बर्बाद हुए, सबसे ज्यादा अराजकता का माहौल बना, किन्तु किसी को इसकी फ़िक्र नहीं, यह राष्ट्रविरोधी दंगल जो पिछले ढाई साल से देश को खोखला कर रहा है वो किसी को नहीं दिखा , इस राष्ट्रविरोधी दंगल का विरोध किसी को नहीं करना है, करना है तो सिर्फ फिल्म का विरोध करना है !! आप अखाड़े में बैठ के इस राष्ट्रविरोधी दंगल का मज़ा लीजिये जब तक देश का विनाश नहीं हो जाता, मैं चला ग़द्दार आमिर की फिल्म दंगल  देखने !!


Sunday 20 November 2016

देशद्रोह

देशद्रोह, यानी के वो काम जो देश के खिलाफ हो, देश के कानून और सविंधान के खिलाफ हो, देश और देश की जनता के हितों के खिलाफ हो, देशद्रोह कहलाता है और उसे करने वाला देशद्रोही । किन्तु पिछले कुछ 4-5 सालों से देश में एक नयी राष्ट्रवादियों की फसल तैयार हुई है जो हर किसी को देशभक्त और देशद्रोही के प्रमाणपत्र बांटने का काम कर रही है ।
वो तथाकथित राष्ट्रवादी अपनी अपनी स्वामिभक्ति में इतने चूर है कि उनको उनके स्वामी की "सामान्य आलोचना" भी उन्हें देशद्रोह लगती है, और आलोचना करने वाला इंसान ग़द्दार या पाकिस्तानी ! 2014 के पहले का भारत जिसमे पैदा होने वाला हर एक भारतीय अपनी पैदाईश पे "शर्मिंदा" था, उस भारत में आलोचना करने वालो को "विरोधी पक्ष" कहा जाता था, और उस आलोचक/निंदक को हिक़ारत भरी नज़रो से नहीं देखा जाता था, किन्तु वक़्त के साथ भारत का "नसीब" बदल गया, जबसे "विकास के पापा" ने भारत की बागडोर संभाली है ,हर आलोचक/निंदक अब ग़द्दार या पाकिस्तानी घोषित हो गया है ! 2014 के पहले के पाषाण युग में एक पत्रकार जनप्रतिनिधियों से तीखे सवाल कर सकता था, किन्तु अब उसको "बागों में बहार" जैसे सवाल पूछने पर मजबूर किया जा रहा है, लाइव रिपोर्टिंग के दौरान "देश भक्त" भेजकर उसे धमकियां दी जाती है और पूरी कोशिश की जाती है उसकी आवाज़ को दबा दी जाए ताकि वो ऐसा "देशद्रोह" करने की जुर्रत न करे ! पाषाण युग के भारत में कोई भी शिक्षा संस्थान गर्व करती थी कि उसका alumnus
या भूतपूर्व छात्र आज देश के किसी उच्च पद पर आसीन है, किन्तु इस स्वर्णिम दौर के भारत में कोई भी शिक्षा संस्थान देश के प्रधानमंत्री को अपना छात्र मानने को तैयार नही है , और जो कोई भी हिम्मत करता है देश के प्रधानमंत्री की शिक्षा के बारे में पूछने की उसे तुरंत देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है । आखिर क्या वजह है कि देश के इस स्वर्णिम काल में देशद्रोह बढ़ता ही जा रहा है और देशद्रोही की संख्या लगभग 70% तक जा पहुंची है ? क्यों देश की जनता बग़ावत पे उतर आई है और क्यों वो लोग देशद्रोह किये जा रहे है ? ये एक गंभीर प्रश्न है क्योंकि अगर किसी देश के 70% नागरिक देशद्रोही है तो वो देश उन्नति नहीं कर सकता क्योंकि सारे देशद्रोही सड़कों पर आ जायेंगे और देश गृहयुद्ध की तरफ चला जायेगा ! किन्तु हमारे देश में स्तिथि इसके उलट है, जनता रास्ते पर तो है कागर बग़ावत करने के लिए नही बल्कि ATM के बाहर , कोर्ट कचहरी के बाहर, अस्पतालों के बाहर, बैंकों के बाहर, और ये सब देशद्रोही इतने मजबूर और लाचार है कि चुपचाप खड़े है, न कोई बगावत की, न धरना प्रदर्शन, और न ही कोई आगज़नी ? हाँ कुछ तथाकथित "देश भक्त" जरूर मारने पीटने पे उतारू हो जाते है अगर देश की जनता अपनी समस्याएं बताने लगे तो , आजकल के नए ट्रेंड के मुताबिक़ अगर देश की आर्मी तकलीफ झेल सकती है तो जनता क्यों नही ? ठीक है अगर इस तर्क को मान भी लिया जाए तो फिर सिर्फ देश की जनता ही क्यों ये तकलीफ बर्दाश्त करे? देश के नेता, एक्टर, बड़े पूंजीपति ये लोग क्यों लाइन में नही लगे है, क्या ये देशभक्त है और सिर्फ आम जनता ही देशद्रोही है? और जो लोग इस समस्या को जनता के सामने लाना चाहते है वो भी देशद्रोहो हो गए, सोशल मीडिया पे कुछ भाड़े के "देश भक्त" ये बताने में दिन रात लगे हुए है कि जनता भी देहद्रोही है और इस समस्या के खिलाफ आवाज़ उठाने देशद्रोह है ! हो सकता है कि ये लेख लिखने के लिए मैं भी देशद्रोही घोषित हो जाऊं, किन्तु उन देश भक्तो से मेरा सिर्फ एक सवाल है कि "क्या देश की समस्या को उजागर करना, उस जनता के लिए आवाज़ उठाना वाक़ई देशद्रोह है??? "