Friday 1 March 2019

Reality Of Kashmiri Pandit Exodus - 1

Source - Kashmir: Exposing the Myth behind the Narrative By Khalid Bashir Ahmad. ...A thread written by @Kashmirology on twitter .... I am just compiling his thread !

During the armed rebellion of 1989, many Kashmiris who were believed to be supporting Indian rule in Kashmir were selectively killed. Several Kashmiri Pandits were also killed, mostly on allegations of being informers of the government.

The first militant attack was on a Muslim police officer, Ali Muhammad Watali. The first militancy related civilian killing was also of a Muslim, Muhammad Yusuf Halwai, on 21 August 1989. He was an activist of National Conference.

Mir Mustafa, a former legislator, was kidnapped and killed on 21 March 1990. Professor Mushir-ul-Haq, VC of the University of Kashmir and Abdul Gani were kidnapped and killed on 6 April 1990. On 23 December 1990, senior politician Maulana Mohammad Sayeed Masoodi was gunned down.Some Kashmiri Pandits like Tika Lal Tapiloo of BJP, Neel Kant Ganjoo - a sessions judge who ordered the hanging of Maqbool Bhat, Lassa Koul – Director of Doordarshan Srinagar and Pushkar Nath – Assistant Director in the State Information Department — were also killed.All these killings were political rather than communal in nature. The first militancy related abduction was also of a Muslim Kashmiri woman, Rubaiya Sayeed, who was later released in exchange of five jailed rebels.


As per Anuradha Bhasin, "Many of them (Kashmiri Pandits) were shot dead for their affiliation with the intelligence agencies or their role in the government decision- making. Kashmiri Pandits occupied a prominent place in government jobs and bureaucracy."

Recently, AS Dulat was the IB chief in Kashmir during the 90s also accepted that IB, in J&K, had a fair amount of Kashmiri Pandits. “They sneaked in and out of all sorts of places and got the intelligence flowing… they rendered yeoman service to the nation."



On 1 March 1990, Almost a million Kashmiris marched towards the Headquarters of UNMOGIP to handover a memorandum seeking freedom of Kashmir from the Indian rule. The demonstration continued for days without a break but not a single Pandit or his/her property was harmed.





Rastriya Seva Dal, after visiting Jammu & Kashmir in April 1990, wrote in a report published by the Economic and Political Weekly that -




"Whether the Islamic sloganeering from mosques was widespread or this happened only in selected pockets, since there is no recorded document or media reports, the truth is likely to be a causality with imagination and prejudice clouding the real picture."




Most of the Kashmiri Pandits were unaware of the Government's plan to shift them to Jammu or other places temporarily to pave a way for a massive crackdown on the Muslims. Here is how Kashmiri Muslims helped their brethren.


In April 1990, Justice V. M. Tarkunde visited Kashmir and reported total communal harmony, -




All these statements prove that there were no blood-thirsty frenzied mobs on streets or in mosques who forced the Kashmiri Pandits to migrate. How would it have been possible? Kashmir was under curfew and shoot at sight orders were implemented on 17 January itself.

"There is no dispute about the fact that Kashmiri Pandit community was made a scapegoat by Jagmohan, some self-styled leaders of our community and other vested interests…. "


Pandits were assured by the government that once the proposed massacre of Muslims in Kashmir was completed and the movement curbed, they would be sent back to the valley. - KL Koul


In this letter below, Rajnath Turki, a Kashmiri Pandit writes to his friend Mushtaq Wani about how the security forces at Karan Nagar forced him to leave.


In a letter published in the Daily Alsafa on 18 September 1990, K.L. Koul also wrote -


Kashmiri Pandits faced overwhelming problems in Jammu and continue to do so. The weather was hot, tents were crowded, washrooms were ill-equipped. Young Pandit girls were subjected to stalking on daily basis. Kashmiri Pandits were facing an identity and cultural crisis.




As per some Indian Media channels and Kashmiri Pandit organizations, 3,50,000 to 7,00,000 Kashmiri Pandits were forced to migrate from Jammu & Kashmir but according to the Census of 1981 the total population of Hindus (including non- Kashmiris) was 124,078.

Given the decade growth of the community from 1971 to 1981 as 6.75% their population in 1991 would have been around 132,000. If we subtract at least 8,000 Kashmiri Pandits who didn’t leave the valley, we get almost 124,000 Kashmiri Pandits who migrated.
Following the migration, BJP came up with a list of 55 allegedly destroyed temples in Kashmir. On the day of the demolition of Babri Masjid (6 December 1992), Lal Krishna Advani claimed 55 temples had been destroyed in Kashmir. He Lied.


Journalist Harinder Baweja had busted this myth with photographic evidence and revealed that the BJP had misled people to score political points. In many cases, Muslims have been taking care of temples since decades.





In another case, a lease holder, Kuldeep Narayan Jaggi sold the rented land illegally for 2.5 Crore. Even an ancient idol from the temple is missing. Some Kashmiri Pandits say assets worth Rs 500 Crore are already sold out.



Many non-Kashmiri Pujaris came from India and took over the temples here. These Pujaris started selling away various properties that the temples owned. In one case three Pujaris looked over 375 Kanals of temple land which they had rented to non-state-subjects, violating the A370.




Tuesday 6 March 2018

लेनिन और भगत सिंह

लेनिन और भगत सिंह ! 

कल त्रिपुरा में चुनाव जीतने के 48 घंटो के भीतर संघ और भाजपा के गुंडों ने लेनिन की मूर्ति को तोड़ दिया ।कई मंत्रियों, संघठन के पदाधिकारियों और भक्तों ने इस पर खुशी जाहिर की और लेनिन के खिलाफ ज़हर उगला ।

क्या वो लोग जानते है कि शहीद ए आज़म भगत सिंह लेनिन और मार्क्स के बहुत बड़े मुरीद थे? भगत सिंह अपने कॉलेज के दिनों में और जेल प्रवास के दौरान मार्क्स, लेनिन, ट्रोत्स्की आदि को पढ़ा करते थे,भगत सिंह ने अपने पत्र "मैं नास्तिक क्यों हूं" में इस बात का खुलकर जिक्र किया है कि वह वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे और क्रांति के गुर उन्होंने रूसी क्रांति के नायक लेनिन से ही सीखे है ।

21 जनवरी 1931 को "लेनिन दिवस" पर भगत सिंह ने भरी अदालत में यह तार पढ़ा ।

अनुवाद (मेरा किया हुआ) इस प्रकार है "आज लेनिन दिवस के दिन हम उन सबको तहे दिल से मुबारकबाद देते है, जो लेनिन के विचार को आगे बढ़ाने के लिए कुछ कर रहे है । और हम उस महान प्रयोग की कामयाबी की दुआ करते है जो रूस में हो रहा है।
हम भी साथ देंगे मजदूरों द्वारा चलाये जा रहे इस अंतरराष्ट्रीय आंदोलन का। आम आदमी की जीत होगी। पूंजीवाद हारेगा। साम्राज्यवाद हारेगा " (अनुवाद समाप्त)

ये थे भगत सिंह के ख्याल लेनिन के बारे में, आजकल की व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी की मिट्टी से पैदा हुए भगवा खरपतवार को इसमें भी JNU की बू आएगी, किन्तु ये भगत सिंह के विचार थे, JNU वाले तो सिर्फ भगत सिंह का अनुसरण कर रहे है ।

भगत सिंह की आखिरी इच्छा :- जब भगत सिंह जेल में थे और उनसे उनकी आखिरी इच्छा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वो आजकल लेनिन की जीवनी पढ़ रहे है और अपनी मौत से पहले इसको खत्म करना चाहते है ।

भगत सिंह ने अपनी मौत से पहले सुखदेव को लिखा था कि "हो सकता है कि तुम और मैं जिंदा न रहें मगर इस देश के लोग रहेंगे। मार्क्सवादी और साम्यवादी विचारधारा जरूर जीतेगी" .

End .






Sunday 22 January 2017

स्वर्ग-सा भारत OR स्वर्गवासी भारत

स्वर्ग , जन्नत या Heaven, इसकी परिकल्पना हर धर्म, संप्रदाय में की गई है ! हर धर्म में स्वर्ग की प्राप्ति के अलग अलग रास्ते बताये गये है, मगर एक बात सभी धर्मों में कॉमन है और वो है कि "मरे बगेर स्वर्ग दिखाई नहीं देता" ! अगर आपको स्वर्ग के दर्शन करने है तो आपको मरना पड़ेगा, मृत्युलोक में जाना पड़ेगा ! 8 नवम्बर 2016 को एक महान आदमी  नारेस्त्रदामोस मोदी ने घोषणा करते हुए कहा था कि वो देश को स्वर्ग बना देंगे ! अब यहाँ शंका इस बात की है कि वो देश को स्वर्ग सा बनाना चाहते है या फिर स्वर्गवासी बनाना चाहते है। जबसे साहेब ने देश की बागडोर संभाली है तब से देश स्वर्ग बना या नहीं ये बहस का विषय हो सकता है किंतु पिछले कुछ महीनो में हमने देश की अर्थव्यवस्था, सैनिकों, किसानों, उद्योगों, रूपया,  आदि का सिर्फ स्वर्गवास होते ही देखा है ! पिछले ढाई साल से किसी "विकास" नामक अवतार की देश प्रतीक्षा कर रहा है, लोगों का मानना है कि वो "विकास" अवतरित होगा और देश की सारी समस्याओं को चुटकी में खत्म कर देगा । आज तक उस विकास को किसी ने देखा नही है जो इस देश को स्वर्ग सा बनायेगा, हालाँकि कुछ लोगों का दावा है कि उन्होंने विकास को देखा है । जब इन ज्ञानी लोगों के बारे में पता लगाया गया तो पता चला कि ये मामूली लोग नही है, बल्कि ये परम् श्रद्धालु भक्त है जो दिन रात भगवन की तपस्या में लीन रहते है और अपनी भक्ति की शक्ति से इन्हें वो दिव्या दृष्टि मिली की है वो "विकास" नामक अवतार को देख सकें! ये सारे भक्त वो लोग है जो 2014 से पहले "मोदियाबिंद" नामक रोग से ग्रस्त थे, फिर इनको Made in Nagpur भगवा रंग के चश्मे दिए गए , उस चश्मे को पहनने के बाद ये लोग दिन रात सोशल मीडिया पे भगवन की भक्ति करते है और इन्हें चारों तरफ उस चश्मे से सिर्फ "विकास और स्वर्ग" ही दीखता है ! 31% लोगों को यह देश उस करिश्माई चश्मे की बदौलत स्वर्ग दिख रहा है जबकि नग्न आँखों से देखा जाए तो देश का स्वर्गवास हो चूका है !
पिछले 6 साल में जितने सैनिक "धरती की जन्नत" कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ते हुए स्वर्गवासी नहीं हुए उससे ज्यादा अकेले 2016 में हो गए,
भारत की अर्थव्यवस्था भी अब वेंटिलेटर पे है और किसी भी वक़्त स्वर्ग सिधार सकती है, अगर निकट भविष्य में पेट्रोल 84₹ तक पहुंच गया तो वो सीधे मोक्ष को प्राप्त कर लेगा! "विकास" नामक अवतार ने तो ढाई साल में ही इतनी करामात दिखाई की भारत "विकासशील अर्थव्यवस्था" की सूची में पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों से भी ज्यादा गिरी गुज़री हालत में पहुँच चूका है, अगर "भगवान्" ने चाहा तो 2019 तक देश पूर्णरूप से स्वर्गवासी होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेगा, "भगवान" की इस परम इच्छा को मूर्त रूप देने में उनके देवदूत भी तत्परता से दिन रात लगे हुए है,लौहपथ गामिनी विभाग के प्रमुख "प्रभु" ने भी अपनी लीला दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी,और निरंतर भारतियों को स्वर्ग की सैर करवा रहे है, प्रभु और व्यापम वाले मामा जी में गलाकाट प्रतिस्पर्धा चल रही है कि कौन सबसे ज्यादा लोगों को स्वर्गवासी बनायेगा ! भारतीय किसान भी "स्वर्ग-दर्शन" परियोजना में दिन रात योगदान कर रहा है,

किसानों के द्वारा स्वर्ग के लिए बुक कराए गए टिकटों में 42% की अप्रत्याशित उछाल देखने को मिली, जबकि 8 नवम्बर की आकाशवाणी के बाद से अब तक लगभग 20 लाख लोग काम-मुक्त हो चुके है और कई हजारों उद्योग धंधे स्वर्गवासी हो चुके है !

मगर भक्तगण अभी भी रात दिन उनके भगवन का नाम जपने में व्यस्त है और लोगों को साम, दाम, दंड, भेद से समझा रहे है कि 50 दिनों में भगवान् ने देश को जन्नत बना दिया है, इन भक्तों के लिए ग़ालिब का एक शेर लिखना चाहूंगा
हमको मालुम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है
और अंत में इनके भगवान से विनम्र विनती करता हूँ कि भारतवर्ष को भारत ही रहने दो, इसको देश के करोड़ों भारतियों की जन्मभूमि ही रहने दो  इसको स्वर्ग मत बनाओ क्योंकि
जननी जन्मभूमिश च स्वर्गादपि गरीयसी. !!

Saturday 24 December 2016

राष्ट्रविरोधी दंगल

दंगल, अभी हाल ही में रिलीज़ हुई, इस फिल्म में मुख्य किरदार ग़द्दार आमिर खान ने निभाया है, सोशल मीडिया पे कुछ राष्ट्रभक्तों द्वारा इस फिल्म के खिलाफ फतवा जारी किया गया और इसको राष्ट्रविरोधी दंगल घोषित कर दिया गया! वैसे इस देश में दंगल कोई नई बात नहीं हैं, पहलवानी करना, अखाडे में दंगल करना हमारे देश की पुरानी परंपरा है, इसी दंगल ने हमें गामा पहलवान और दारा सिंह जैसे शूरवीर दिए है! किन्तु यहाँ दंगल की नहीं बल्कि "राष्ट्रविरोधी" दंगल की बात हो रही है, एक बहुत बड़ा 'राष्ट्रविरोधी' दंगल 8 नवम्बर 2016 को आज़ाद भारत के पहले 'बेशर्म' प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ( 2014 से पहले वाले PM शर्मिंदा थे) ने 'लांच' किया था !  8 नवम्बर से शुरू हुआ यह दंगल अभी तक 150 ज़िन्दगी की बलि ले चुका है, सैंकड़ो धंधे तबाह कर चुका है, कई लोगों की नौकरियां छीन चूका है ! इस राष्ट्रविरोधी दंगल की घोषणा करते वक़्त " दंगा विशेषज्ञ" श्री श्री 2002 मोदी जी ने कहा था कि हम काला धन मिटने के लिए दंगल कर रहे है, फिर गिरगिट के रंग की तरह मुद्दा काले धन से बदलकर कैशलेस अर्थव्यवस्था पे आ गया! राष्ट्रविरोधी दंगल अब तो पाकिस्तान तक पहुंच चुका है, जो भी सवाल करेगा उसे तुरंत पाकिस्तानी और राष्ट्रविरोधी घोषित कर दिया जाएगा! देश को आज़ाद हुए लगभग 70 वर्ष हो गए मगर देश ने कभी ऐसा "राष्ट्रविरोधी दंगल" नहीं देखा जितना की 2014 के बाद से देखा है, ऐसे मैं अपनी मर्ज़ी से कह रहा हूँ बल्कि आंकड़े चीख चीख कर कह रहा है कि देश में 2014 से राष्ट्रविरोधी दंगल चल रहा है , अब तक देश की सीमा पर 150 जवान इस दंगल की भेंट चढ़ चुके है,अकेले 2016 में 64 सैनिक शहीद हुए जो पिछले 6 साल में सबसे ज्यादा है(और इनमें उन सैनिकों को नहीं गिना जो ATM के बाहर शहीद हुए)   देश में 70,000 किसान इस दंगल में अपने प्राणों की आहुति दे चुके है, अकेले भाजपा शासित महाराष्ट्र में 5000 किसान "small inconvenience" के लिए शहीद हो चुके है !
इस राष्ट्रविरोधी दंगल ने भारत की अर्थव्यवस्था को भी ठिकाने लगा दिया है, भारत की साख़ विश्व स्तर पे इतनी गिर गयी है कि मूडीज ने भारत की रेटिंग बढ़ाने से इंकार कर दिया, इतना ही नहीं बल्कि इब्न बतूता बनकर दुनिया भर की सैर करने वाले तुग़लक़ ने जब विमुद्रीकरण किया तो दुनिया भर की अंतराष्ट्रीय पत्रिकाओं ने इसकी भरपूर आलोचना की!   



 मज़े की बात तो ये है कि इस राष्ट्रविरोधी दंगल में सबसे ज्यादा मैच तथाकथित राष्ट्रवादियों ने ही जीते है क्योंकि इनके सारे मैच फिक्स थे, जबसे दंगल शुरु हुआ है तब से अब तक एक राष्ट्रवादी अखाड़े के 30 पहलवान नए नोटों की डोपिंग करते हुए पकडे गये ! इस अखाड़े के सर्वेसर्वा जो कहते थे कि दंगल का मक़सद सिर्फ और सिर्फ भ्रष्ट लोगो को रुलाना है आज वो खुद देश विदेश में रोने की नौटंकी कर रहे है, अफ़सोस की बात ये है कि मीडिया भी इस नौटंकी में बराबर शामिल है, मीडिया को एक एक मैच की खबर है, मीडिया की पता है कि कौन सा पहलवान नए नोटों का डोप सेवन कर रहा है और कौन नहीं, सारा का सारा दंगल IPL के मैच की तरह फिक्स किन्तु मीडिया अभी भी खामोश है क्योंकि इन्ही फिक्स्ड मैचों का लाइव टेलीकास्ट दिखा कर उनकी TRP बढ़ेगी, कुछ विपक्ष अखाड़े के पहलवानों ने इस दंगल में हो रहे गड़बड़झाले के खिलाफ आवाज़ उठाने की कोशिश की तो अखाडा प्रमुख ने उन्हें पाकिस्तानी घोषित कर दिया , ये वही अखाडा प्रमुख है जो बिन बुलाए पाकिस्तान जाते है वहाँ केक चाटकर आते है, इसी पाकिस्तान की ISI को पठानकोठ हमले की जांच करवाने के लिए भारत आमंत्रित करते है, इनकी ही की नाक के नीचे अब तक सबसे ज्यादा सैनिक शहीद हुए है , सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की, सबसे ज्यादा उद्योग धंधे बर्बाद हुए, सबसे ज्यादा अराजकता का माहौल बना, किन्तु किसी को इसकी फ़िक्र नहीं, यह राष्ट्रविरोधी दंगल जो पिछले ढाई साल से देश को खोखला कर रहा है वो किसी को नहीं दिखा , इस राष्ट्रविरोधी दंगल का विरोध किसी को नहीं करना है, करना है तो सिर्फ फिल्म का विरोध करना है !! आप अखाड़े में बैठ के इस राष्ट्रविरोधी दंगल का मज़ा लीजिये जब तक देश का विनाश नहीं हो जाता, मैं चला ग़द्दार आमिर की फिल्म दंगल  देखने !!


Sunday 20 November 2016

देशद्रोह

देशद्रोह, यानी के वो काम जो देश के खिलाफ हो, देश के कानून और सविंधान के खिलाफ हो, देश और देश की जनता के हितों के खिलाफ हो, देशद्रोह कहलाता है और उसे करने वाला देशद्रोही । किन्तु पिछले कुछ 4-5 सालों से देश में एक नयी राष्ट्रवादियों की फसल तैयार हुई है जो हर किसी को देशभक्त और देशद्रोही के प्रमाणपत्र बांटने का काम कर रही है ।
वो तथाकथित राष्ट्रवादी अपनी अपनी स्वामिभक्ति में इतने चूर है कि उनको उनके स्वामी की "सामान्य आलोचना" भी उन्हें देशद्रोह लगती है, और आलोचना करने वाला इंसान ग़द्दार या पाकिस्तानी ! 2014 के पहले का भारत जिसमे पैदा होने वाला हर एक भारतीय अपनी पैदाईश पे "शर्मिंदा" था, उस भारत में आलोचना करने वालो को "विरोधी पक्ष" कहा जाता था, और उस आलोचक/निंदक को हिक़ारत भरी नज़रो से नहीं देखा जाता था, किन्तु वक़्त के साथ भारत का "नसीब" बदल गया, जबसे "विकास के पापा" ने भारत की बागडोर संभाली है ,हर आलोचक/निंदक अब ग़द्दार या पाकिस्तानी घोषित हो गया है ! 2014 के पहले के पाषाण युग में एक पत्रकार जनप्रतिनिधियों से तीखे सवाल कर सकता था, किन्तु अब उसको "बागों में बहार" जैसे सवाल पूछने पर मजबूर किया जा रहा है, लाइव रिपोर्टिंग के दौरान "देश भक्त" भेजकर उसे धमकियां दी जाती है और पूरी कोशिश की जाती है उसकी आवाज़ को दबा दी जाए ताकि वो ऐसा "देशद्रोह" करने की जुर्रत न करे ! पाषाण युग के भारत में कोई भी शिक्षा संस्थान गर्व करती थी कि उसका alumnus
या भूतपूर्व छात्र आज देश के किसी उच्च पद पर आसीन है, किन्तु इस स्वर्णिम दौर के भारत में कोई भी शिक्षा संस्थान देश के प्रधानमंत्री को अपना छात्र मानने को तैयार नही है , और जो कोई भी हिम्मत करता है देश के प्रधानमंत्री की शिक्षा के बारे में पूछने की उसे तुरंत देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है । आखिर क्या वजह है कि देश के इस स्वर्णिम काल में देशद्रोह बढ़ता ही जा रहा है और देशद्रोही की संख्या लगभग 70% तक जा पहुंची है ? क्यों देश की जनता बग़ावत पे उतर आई है और क्यों वो लोग देशद्रोह किये जा रहे है ? ये एक गंभीर प्रश्न है क्योंकि अगर किसी देश के 70% नागरिक देशद्रोही है तो वो देश उन्नति नहीं कर सकता क्योंकि सारे देशद्रोही सड़कों पर आ जायेंगे और देश गृहयुद्ध की तरफ चला जायेगा ! किन्तु हमारे देश में स्तिथि इसके उलट है, जनता रास्ते पर तो है कागर बग़ावत करने के लिए नही बल्कि ATM के बाहर , कोर्ट कचहरी के बाहर, अस्पतालों के बाहर, बैंकों के बाहर, और ये सब देशद्रोही इतने मजबूर और लाचार है कि चुपचाप खड़े है, न कोई बगावत की, न धरना प्रदर्शन, और न ही कोई आगज़नी ? हाँ कुछ तथाकथित "देश भक्त" जरूर मारने पीटने पे उतारू हो जाते है अगर देश की जनता अपनी समस्याएं बताने लगे तो , आजकल के नए ट्रेंड के मुताबिक़ अगर देश की आर्मी तकलीफ झेल सकती है तो जनता क्यों नही ? ठीक है अगर इस तर्क को मान भी लिया जाए तो फिर सिर्फ देश की जनता ही क्यों ये तकलीफ बर्दाश्त करे? देश के नेता, एक्टर, बड़े पूंजीपति ये लोग क्यों लाइन में नही लगे है, क्या ये देशभक्त है और सिर्फ आम जनता ही देशद्रोही है? और जो लोग इस समस्या को जनता के सामने लाना चाहते है वो भी देशद्रोहो हो गए, सोशल मीडिया पे कुछ भाड़े के "देश भक्त" ये बताने में दिन रात लगे हुए है कि जनता भी देहद्रोही है और इस समस्या के खिलाफ आवाज़ उठाने देशद्रोह है ! हो सकता है कि ये लेख लिखने के लिए मैं भी देशद्रोही घोषित हो जाऊं, किन्तु उन देश भक्तो से मेरा सिर्फ एक सवाल है कि "क्या देश की समस्या को उजागर करना, उस जनता के लिए आवाज़ उठाना वाक़ई देशद्रोह है??? "